कर्ण पिशाचिनी साधना अनुभव | कर्ण पिशाचिनी का इतिहास History of Karna Pishachini ok

कर्ण पिशाचिनी साधना अनुभव | कर्ण पिशाचिनी का इतिहास History of Karna Pishachini

कर्ण पिशाचिनी साधना अनुभव | कर्ण पिशाचिनी का इतिहास History of Karna Pishachini
कर्ण पिशाचिनी साधना अनुभव | कर्ण पिशाचिनी का इतिहास History of Karna Pishachini

 

कर्ण पिशाचिनी साधना अनुभव | कर्ण पिशाचिनी का इतिहास History of Karna Pishachini एक कर्ण पिशाचिनी साधक का अनुभव तंत्र के पारस्परिक ग्रन्थों में काल के आवरण को भेद कर अतीत व भविष्य को देखने के अनेक प्रयोग बताये गये हैं हाजरात, वार्ताली, चक्रेश्वरी, यक्षिणी, कर्ण पिशाचिनी आदि अनेक मंत्र हैं, जो भूत-भविष्यत् का ज्ञान करने की क्षमता प्रदान करते हैं।

ये स्वप्न दृष्टि और शब्द के माध्यम से काम करते हैं । जैसा इनका नाम है वैसा इनका स्वरूप और शक्ति है । इनको सिद्ध करने में कोई अधिक कष्ट या विशेष शुद्धि को आवश्यकता नहीं रहती ।

बहुत_सभव है—हम मे से अधिकांश ने ऐसे व्यक्तियो को देखा हो जो हमारे विचारों को ही पढ-सुन लेते हों, वे हमे देखते ही हमारे प्रश्नों को कागज पर लिखकर रख लेते हों, हमारे परिवार को सारी पृष्ठभूमि मे नामोल्लेख’ करके बतला देते हो, और तो और उन्होंने अपने कागज पाच प्रश्न लिखे हो और आपने तीन ही प्रश्न सोचे हो शेष दो प्रश्न आप बाद में सोचें और आपको आश्चर्य हो कि उस व्यक्ति ने आपके प्रश्न पहले हो कैसे लिख दिये !

हमारी सामान्य बुद्धि के लिए यह बहुत बड़ा चमत्कार है किन्तु तंत्र मार्ग में यह निकृष्ट और साधारण-सी पैशाचिक साधना है। पूछने पर ऐसे व्यक्ति ज्योतिष को गणित, किसी देवता की कृपा या अपने आपको अंतर्द्रष्टा होने की बात कहेंगे किन्तु ऐसा है नहीं उनके पास पिशाचिनी है|

जिन लोगों के पास यह शक्ति है वे लोगों को चमत्कृत करके अपना प्रभाव जमा सकते हैं, उनके पास पैसे की कमी नही रहती । किन्तु उनका जीवन सुखमय नही रहता – इसके कई कारण हैं, पहली बात तो यह है कि पैशाचिक साधना होने के कारण व्यक्ति पिशाच बुद्धि और चरित्र वाला हो जाता है । स्नानादि करके स्वच्छ और दिव्य रहना उसके स्वभाव नही रहता ।

यों अपने को प्रदर्शित करने या पोश लोगो की संगति मे बैठने के कारण वे राजसी वैभव और कपड़ों का शौक कर लेते हों। किन्तु यह उनका धर्म नही होता। दूसरी बात यह कि ऐसे लोगो में असत्य भाषण की आदत भी पड़ जाती है।

शास्त्र कहते हैं—“सत्य संघाः देवा. असत्य सधाः राक्षसा:” इसलिए राक्षसी साधना के प्रभाववश वे असत्य बोलने लगें तो कोई आश्चर्य नही । कर्ण पिशाचिनो को स्वयं को शक्ति होती है, इसका स्वयं का वातावरण होता है।

वर्तमान मे इसकी अव्याहत गति है, भूतकाल मे भी यह चलती है किन्तु भविष्यत् में गमन करने के लिए इसे पूरी सामय्यं मिलनी चाहिए और यह सामर्थ्य साधक स्वयं प्रकट करता है। समय के पार देखने के लिए दिव्य दृष्टि चाहिए और दिव्य दृष्टि मिलती है मन की निर्मलता से मन पर छाये मैल उसकी अनुभव शक्ति को मन्द कर देते हैं हमारे आस-पास के आग्रहो मे मन की शक्ति बिखरे-बिखरी रहती है ।

यद्यपि कर्ण पिशाचिनी हमारी अर्जित शक्ति है और वह मशीन की * तरह अथक भाव से हमारा काम करती रहती है फिर भी वह हमारी शक्ति नही है, वह हमसे भिन्न है, मानसिक निर्मलता से जो कुछ भी मिलता है वह हमारे मन का हो जाता है ।

साधना के उच्च स्तर मे जाने पर ऐसी शक्ति स्वतः प्रस्फुटित हो जाती है और उसके साथ ही उसमे इतनी शक्ति आ जाती है कि वह अनिष्ट निवारण भी कर सकता है। अब प्रस्तुत है एक कर्ण पिशाचिनी की साधना करने वाले का अनुभव |

शंकर समझता है आज की दुनिया में चमत्कार को नमस्कार करते हैं । साधारण आदमी की तरह जीने से क्या लाभ कुछ विशेष किया जाय, कुछ अतिरिक्त पाया जाय । कर्ण पिशाचिनी उसे सरल नजर आती है ।

उसकी साधना विधि समझकर अनुकूल मुहूर्त में साधना प्रारंभ कर देता है । पांचवे दिन ठीक दो पहर में जब वह विश्राम कर रहा होता है। तो धर्म निद्रित अवस्था मे उसे एक स्त्री नजर आती है स्त्री कोई घोर रूपा नही है किन्तु इतनी मौम्य और सुन्दर भी नही है कि उसकी तरफ देखता ही रह जाय साधारण श्यामल शरीर, मध्यम कद, अलंकार रहित किन्तु उसके ललाट में आडा एक नेत्र जिसमें से तेज रोशनी-सो निकलती लगती है और उसकी तरफ देखा नही जा सकता ।

उसके पीछे घडी मारी फौज रहती है जिसमें वे सारे लोग मौजूद हैं जिनको शंकर ने देखा था और मर गये थे । ऐसे अनेकों लोग हैं। उस पिशाचिनी ने शंकर के मस्तक पर धर रखा है किन्तु वह इतना भयभीत हो जाता है कि कुछ बोलना तो दूर आंख मूंद कर देवी कवच का पाठ करने लगता है और उठ जाता है । क्षण भर में सारा दृश्य लुप्त हो जाता है ।

प्रयोग अधूरा रह जाता है । अगर शकर भयभीत न होता और उससे बात करता तो कर्ण पिशाचिनी उसके साथ सदा के लिए आ जाती। यह साधना पिशाच वर्ग की है। इसलिए इसे वचन बद्ध किया जाता है। यद्यपि यह मूर्तिमान रूप मे साथ नही रहती फिर भी इसे रहने के लिए एक नियत रूप और आकार देना ही पडता है और एक बार जिस रूप मे रहने के लिए कह दिया उस व्यक्ति के घर में वह चीज रह नही सकेगी।

माना हमने उसे चिडिया के रूप में रहने के लिए वचन दे दिया तो अब हमारे घर में चिड़िया जैसी चीज रह नहीं सकेगी। पत्नी के रूप में यह सबसे अधिक शक्तिशाली और आज्ञाकारी रहती है पर इस रूप मे रखने पर वैध पत्नी का मुध नहीं मिलने का ।

इसकी मादा करते समय आसन को विधाये ही रहना पड़ता है। ऐसा नही कि काम करते समय आसन बिछा दिया और फिर समेटकर य दिया । मंत्र जप करते समय ग्वार पाठा सदा हाथ में रखना पड़ता है । ग्यार पठे के प्रभाव मे यह उम्र रूप में नहीं आती।

ग्वारपाठे को संस्कृत मै कुमारी कहते हैं, आयुर्वेद को दृष्टि से यह बात दोष को कम करती है। इन दोनो दृष्टियों से यह ग्वार पाठा तमोगुण को उग्रता कम करने वाला .हता है। यह प्रत्येक तमोगुणों या पैशाचिक योनियों का गुण है कि वे साधना करते समय दिये गये वचन का पालन करने के लिए मजबूर हैं ।

इस प्रकार का वचन भंग करना उनको व्यवस्था में दण्डनीय होता है फिर त्र बल से ये लोक बरबस रोच कर लाये जाते हैं, ये प्रसन्न अपनी इच्छा नही होते । भूत साधना से वश में आया प्रेत अपने आप मे सुखी और बसन्न नही होता क्योकि उसको गुलाम बनाया जाता है किन्तु साधना की क्ति और मंत्र के प्रभाव के आगे वे विवश हैं ।

पिशाचिनी की साधना करते समय सभी को इसी प्रकार के दृश्य दिखाई दें यह आवश्यक नही, किसी को भिन्न प्रकार के आभास भी हो सकते हैं और किसी को कोई रूप या आकार दिखाई न देकर केवल कान ने ही सुनाई पड़ सकता है और स्पष्ट आवाज आने से पहले भयंकर गर्जन चिंघाड़ सुनाई दे सकती है इनसे डरे बिना जो सुने उसका उत्तर दे देना चाहिए।


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