यक्षिणी क्या है | यक्षिणी की पूरी कहानी क्या है What is Yakshini? What is the full story of Yakshini
यक्षिणी क्या है | यक्षिणी की पूरी कहानी क्या है What is Yakshini? What is the full story of Yakshini यक्षिणी का उल्लेख हमारे सभी प्रमुख धर्म ग्रंथों में मिलता है रामायण से लेकर महाभारत तक तथा अन्य कई पुराणों में भी इनका माननीय उल्लेख है कौन है यक्षिणी कितनी शक्तिशाली होती है यह कैसे उत्पत्ति हुई थी इनकी तंत्र साधना में क्यों इनका इतना महत्व है आइए विस्तार से जानते हैं यक्षिणी के बारे में गुरु मंत्र साधना में आपका स्वागत है आपको हमारे पोस्ट पसंद आते हैं तो कृपया वेबसाइट को सब्सक्राइब और पोस्ट को लाइक अवश्य करें कार्य करने की प्रेरणा मिलती है
प्राणियों में से एक है जो ब्रह्मांड के विभिन्न क्षेत्रों में निवास करते हैं यक्ष भी श्रेणी में आते हैं और इनके स्वामी कुबेर हैं तंत्र साधना के विभिन्न ग्रंथों में साधारणतया यक्षिणीऔ 36 का उल्लेख आता है इनमें से चार यक्षिणी या पूरी तरह गोपनीय है इन चार गुप्त यक्षिणीऔ के बारे में कोई नहीं जानता 36 यक्षिणीऔ में हर एक यक्षिणी का एक विशिष्ट मंत्र है कि निश्चित करने से सुख सौभाग्य ऐश्वर्या सफलता वैभव प्रक्रम संतान सुख मनचाही उपलब्धियां रत्न आदि प्रकार का सुख प्रदान करने वाली तथा शत्रु बाधा दूर करने वाली हैं
अगर इन मंत्रों का विधि विधान से उच्चारण किया जाए तो मानव जीवन की समस्त परेशानियां खतम हो सकती हैं बिना किसी गुरु के और बिना किसी अनुभव के किसी भी मनुष्य का इनको सिद्ध करना उचित नहीं है यक्षिणी का वर्णन हिंदू धर्म के अतिरिक्त जैन तथा बौद्ध धर्म में भी बड़े विस्तार से किया गया है रामायण और महाभारत में तो यक्ष और यक्षों का वर्णन कई स्थान पर मिलता है रामायण काल में ताड़का एक बहुत शक्तिशाली यक्षिणी थी जिसका वध भगवान विष्णु के अवतार श्री राम के हाथों में संभव था
सुरसुंदरी मनोहारी कनकावती प्रतिक्रिया पद्मिनी कामेश्वरी अनुरागिनी कर्ण पिशाचिनी चित्र आदि इनके नाम है और यक्षिणीऔ शुद्ध पिशाचनी को नकारात्मक शक्ति के रूप में जाना जाता है इनकी उत्पत्ति के दो मुख्य विवरण हमें अपने धर्म ग्रंथों में मिलते हैं पहला रामायण के उत्तरकांड में हमें मिलता है इनके अनुसार एक समय सृष्टि का निर्माण करते हुए जल की रक्षा के लिए ब्रह्मा जी ने अनेक जंतुओं को बनाया था प्रजापति ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि तुम यत्न पूर्वक मनुष्य की रक्षा करो तो उन्होंने कहा रक्षाम अर्थात हम रक्षा करते हैं और कुछ प्राणियों ने कहा यह यक्षाम अर्थात उत्तरोत्तर वृद्धि करते हैं
जिन्होंने रक्षम कहा था पर आप राक्षस हुए और जिन्होंने यह शाम कहा था वह यक्ष हुए आगे चलकर ऋषि विश्रवा ने दो विवाह किए पहली पत्नी का नाम केकसी था जिससे रावण कुंभकर्ण विभीषण आदि राक्षस उत्पन्न हुए और दूसरी पत्नी एलविधा से यक्षों के स्वामी कुबेर उत्पन्न हुए थे प्राप्त हुए थे उनके पास शक्तियां थी और दूसरी तरफ से थे उनके पास भी बहुत से जादुई एवं मायावी शक्तियां थी लेकिन दोनों में अंतर यह था कि राक्षस पाताल लोक में ही रहते हैं
वहां तक जाने में यक्ष थे और देवलोक तक सक्षम थे निवास करते हैं एवं तथा यक्षों ने ब्रह्मा जी से मांगा था कि पूजन शक्ति प्रदान करें जिससे वे लोग साधनाएं कर ऊर्जा तथा शक्तियों को अर्जित कर पाए इसी के फलस्वरूप ही अपनों को तांत्रिक विद्या प्राप्त हुई और यही कारण है कि यक्ष और यक्षिणी की पूजा विभिन्न प्रकार की साधना में प्रचलित है
यक्षिणी की पूरी कहानी क्या है – यक्षिणी की उत्पत्ति की एक और पौराणिक कथा है
यक्षिणी की उत्पत्ति की एक और पौराणिक कथा है जिसके अनुसार एक समय भगवान शंकर हिमालय पर्वत पर तपस्या कर रहे थे तो देवी पार्वती अपनी सखियों के साथ मिलकर महादेव जी की सेवा कर रही थी ऐसा करने के पीछे देवी पार्वती का उद्देश्य प्रभु शिव को पति रूप में प्राप्त करना था उस समय वहां देवराज इंद्र तथा अन्य देवों के कहने पर भगवान शिव की तपस्या भंग करने के लिए कामदेव पहुंचे उस समय जब कामदेव नहीं भगवान शिव के ऊपर बाण छोड़ने की सूची तो जाने क्यों उन्होंने सोचा क्यों ना मैं यह बाण माता पार्वती भगवान पाने की इच्छा और अधिक हूं और
वह और अधिक तपस्या करें फिर कामदेव ने अपने बानो का प्रयोग माता पार्वती पर कर दिया एवं प्रकृति होने से सब जानती थी इसीलिए उन्होंने कामदेव के इस दुष्ट कार्य को क्षमा कर दिया तारकासुर वध के लिए भगवान शिव को वैराग्य से हटाना अति आवश्यक था क्योंकि उसका वध भगवान शिव की संतान के हाथों ही होना था भगवान शिव देवी सती के वियोग के कारण समाधि में चले गए थे इसीलिए उनको ऐसी अवस्था में देखकर देवताओं ने कामदेव को भेजा था क्योंकि उन्हें यह ज्ञात था कि माता पार्वती ही माता सती हैं और तब माता पार्वती का भगवान शिव की बनना निश्चित था
इसीलिए जब कामदेव ने छोड़े तो पार्वती क्रोधित अवश्य हुई थी परंतु फिर भी मना कर दिया क्योंकि वह जानती थी कि उसकी भावना गलत नहीं थी पार्वती जी ने कामदेव को क्षमा कर दें लेकिन उनसे माता पार्वती के माथे पर पसीने की बूंदों से उनकी भावना पसीने के रूप में बाहर आ गई थी तब माता पार्वती ने उन दोनों को हाथ से पूछ कर जमीन पर पटक दिया और ब्रह्मांड के अलग-अलग जगहों पर जहां जहां वह बूंदे गिरी थी वहां वहां यक्षणी उत्पन्न हो गई देवी के उत्पन्न होने के कारण सभी शक्तिशाली तो थी परंतु कामतुर थी उसी के कारण सभी व्यक्तियों और विषयों को छूने लगी इस पर उनको श्राप दिया गया कि वह तब तक देवता तुल्य नहीं हो सकेंगे
जब तक कोई व्यक्ति उन्हें उनकी साधना नहीं करता साधना का विधान ऐसे ही हमारी धरती पर आया था कामदेव का भगवान शिव पर बाण चलाने का वृतांत मिलता है जिस पर भगवान शिव ने क्रोधित होकर कामदेव को अपना तीसरा नेत्र खोलकर भस्म कर दिया
यक्षणी बहुत ज्यादा शक्तिशाली होती हैं इसीलिए उनको सिद्ध करना बहुत कठिन है क्योंकि उनके पास अलौकिक शक्तियां होती हैं और वह हर एक कार्य को संपन्न करने में सक्षम होती हैं पाताल आदि सभी लोगों से जुड़े हुए हैं सभी लोगों में भटकते हैं वे चाहते हैं उन्हें भी साधक मिले जो सच्चा होना चाहिए
अपनी माँ प्रेमिका और पत्नी रूप में प्रेमिका के रूप में उनका श्राप नष्ट करें अगर कोई साधक ऐसा कर पाता है तो बदले में मैं अपने साधक की हर इच्छा पूर्ण करते हैं यक्षिणों की संख्या अनंत है सौम्य में होती हैं कुछ उग्र स्वभाव की होती हैं
यह आपके मन मस्तिष्क पर हावी भी हो सकती हैं इनकी सिद्धि से पूर्व अपने इष्ट देव की सिद्धि होना आवश्यक है यदि भी अपने साधक की बुरी तरह परीक्षा लेती है थोड़ी सी भी गलती हो जाने पर उसे साधकों कष्ट भी देती है इसीलिए इनकी सिद्धि से पूर्व सभी आवश्यक सावधानियां बरतनी चाहिए की पोस्ट में बस इतना ही आशा करते हैं कि आपको हमारे यह पोस्ट पसंद आया होगा कृपया इसे लाइक और शेयर अवश्य करें किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए आप सब से क्षमा याचना करते हुए आपसे निवेदन है कि प्रेम पूर्वक परमपिता परमात्मा को मन में धारण करें और बोले वैदिक सनातन धर्म की सदा ही जय
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