मंत्र शक्ति के चमत्कार और मंत्र कैसे काम करता है मंत्र शक्ति के चमत्कार और मंत्र कैसे काम करता है Miracles of Mantra Shakti and how Mantra works ok

मंत्र शक्ति के चमत्कार और मंत्र कैसे काम करता है मंत्र शक्ति के चमत्कार और मंत्र कैसे काम करता है Miracles of Mantra Shakti and how Mantra works

 

मंत्र शक्ति के चमत्कार और मंत्र कैसे काम करता है मंत्र शक्ति के चमत्कार और मंत्र कैसे काम करता है Miracles of Mantra Shakti and how Mantra works
मंत्र शक्ति के चमत्कार और मंत्र कैसे काम करता है मंत्र शक्ति के चमत्कार और मंत्र कैसे काम करता है Miracles of Mantra Shakti and how Mantra works

मंत्र शक्ति के चमत्कार और मंत्र कैसे काम करता है मंत्र शक्ति के चमत्कार और मंत्र कैसे काम करता है Miracles of Mantra Shakti and how Mantra works मंत्र शक्ति का आधार स्रोत अक्षरों को जैसे-तैसे संयोजित करके मुंड से उनकी निकाल देने से ही कविता नहीं कन जाती। वीर रस की कविता को बुदबुदा कर पढ़ने से उसका प्रभाव ही समाप्त हो जाता है। तो जैसे-तैसे पढ़े जा सकते हैं और न उन्हें सामान्य बोलचाल के वाक्यांशों की तरह माना जा सकता है। मंत्र भी न तो फिर मन्त्र है क्या ? मन्त्र-साधना कैसे करें? पुस्तकों से प्राप्त ज्ञान के आधार पर मन्त्रों का चयन करके उनका वाचन कर देना मन्त्र साधना नहीं है। इस साधना के दो मुख्य आधार है- एक विशेष क्रम के अनुसार संयोजित अक्षरों से निर्मित मन्त्रों का गुरु निर्देशन में चयन तथा उनका सही उच्चारण । अन्य गौण आधार है-साधक का व्यक्तित्व विशेष प्रभाव उत्पन्न करने के लिए विशिष्ट आसनों पर बैठकर मंत्र जप करना, प्रत्येक दिशा से आती हुई विशिष्ट ध्वनियों को ध्यान में रखते हुए साधना के समय दिशा-निर्धारण करना आदि। है।

इस लेख में इन्हीं बातों पर प्रकाश डाला गया मन्त्र अपने आप में शब्द गुंफन और उच्चारण का सम्यक विज्ञान है | कविता की तरह मन्त्र का निर्माण भाव प्रधान या अर्थ प्रधान नहीं होता अपितु इसका आधार अक्षरों के क्रम का एक निश्चित संयोजन है जिससे कि उसके क्रमबद्ध उच्चारण से ऐसी विशिष्ट ध्वनि निःसृत हो जो अभीष्ट प्रयोजन के लिये आवश्यक होने के साथ-साथ सफलतादायक डो।

जिस प्रकार सितार में तारों का एक विशेष क्रम होने से डी एक निश्चित और प्रभावपूर्ण ध्यानि निकलती है, उसी प्रकार मन्त्रों का आधार भी शब्दों का परस्पर संयोजन और यानि प्रभाव है। मन्त्र के प्रभाव के लिये उसके उच्चारण का भी विशेष महत्व है। अलग-अलग मन्त्रों के लिये अलग-अलग विधान है। कुछ मन्त्र स्फटिकरण युक्त होते हैं तो कुछ मन्त्र मानसिक होते हैं। परन्तु फिर भी उच्चारणयुक्त मन्त्र ही प्रभाव पूर्ण माने गये है।

मन्त्र का शब्द संयोजन और साधक का विधिवत उच्चारण ये दोनों मिलकर ब्रह्माण्ड में एक विचित्र प्रकार की स्वर लहरी प्रवाहित करते हैं जिससे मन्त्रानुष्ठान में निश्चित सफलता प्राप्त होती है। ध्यान अपने आप में एक शक्ति है। विम्र के ध्यानि विशेषज्ञों ने इस बात को स्वीकार किया है को एक विचित्र प्रकारको एक विशेष कार्य सिद्धि में अनुकूलती है। प्रत्येक ति प्रत्येक कार्य के लिये उपयुक्त नहीं।

मन्त्रोच्चार से उत्पन्न यानि प्रवाड साधक को सम्मन्न घेतना को प्रभावित करता है। मन्त्र ध्वनि का कम्पन अन्तरिक्ष में रिते हुए परिस्थितियों को अनुकूल बनाता है. शरीर के प्रत्येक रोम, स्थूल एवं सूक्ष्म शरीर नाड़ी गुष्ठको तथा शरीर स्थित चक्रों पर इन मन्यानियों का प्रभाव पड़ता है और इसकी वजह से शरीर में इ पिंगला तथा सुषुम्ना जैसी विद्युत प्रवाह से पूरा वातावरण आप्लावित हो जाता है।

मन्त्र साधना में अक्षरों का संयोजन तथा साध का सही उच्चारण मूल आधार है। यदि उधारण में अन्तर है तो मन्त्र का प्रभाव नहीं होता। यदि वीर रस की कविता दाते हुए पढ़ी जाय तो उसक प्रभाव नहीं होता। इसी प्रकार मन्त्र एक विशेष तय के साथ ही उच्चारण होता है और वह उच्चारण पुस्तकीय ज्ञान के माध्यम से संभव नहीं है अपितु गुरु डी अपने झुंड से शिष्य को सम्मझा सकता है।

शास्त्रों में वाक् साधना को ही आत्मविद्या का प्रधान आधार माना गया है। उनके अनुसार साधक को मन, वचन और कर्म से एक विशेष उच्च स्तर का समन्वय करना पड़ता है जिससे कि मन्त्र का प्रभाव सही रूप से और प्रभावपूर्ण ढंग से हो । मन्त्र चेतन शरीर के साथ-साथ अचेतन शरीर से भी सम्पर्कित रहता है अतः मन के चक्रों से जब तक शब्द सही प्रकार से नहीं टकराते तब तक उनका विशिष्ट प्रभाव ज्ञात नहीं होता। विशेष मन्त्र शरीर के किस चक्र से टकराकर पुनः होठों से बाहर निकले, यह मन्त्र का मूल आधार है। इसी के आधार पर मन्त्रों का वर्गीकरण किया गया है।

हमारे शरीर में नौ चक्र माने गये हैं और प्रत्येक चक्र का अपना एक विशिष्ट महत्व है। हम जब मन्त्र उच्चारण करते हैं तो पहले वह शरीर के भीतर चक्र से टकराता है और उसके बाद ही वह मुंह से निसृत होता है। इसलिये यह आवश्यक है कि शरीर के इस चक्र से मन्त्र की ध्वनि टकराये ।

इसके लिये विशेष आसनों का विधान है। एक निश्चित आसन पर बैठने से एक निश्चित चक्र उत्तेजित रहता है, फलस्वरूप उस समय जब हम ध्वनि उच्चारण करते हैं तो अन्य चक्र सुप्तावस्था में रहते हैं परन्तु जो चक्र उत्तेजित होता है उसी से वह वाणी टकराकर बाहर निसृत होती है फलस्वरूप उस मन्त्र में एक विशेष प्रभाव आ जाता है। इस प्रकार की ध्वनि ही सही अर्थों में मन्त्र कहलाती है और इसी प्रकार की ध्वनि शक्ति से चमत्कार उत्पन्न होता है । मन्त्र में सफलता प्राप्ति के लिये जहां साधक का व्यक्तित्व कार्य करता है, वहीं उसके वचन और कर्म का संयोजन भी सफलता देने में सहायक होता है।

इसके बाद मन्त्र का सही उच्चारण, उसका आरोह-अवरोह तथा सही आसन आदि आवश्यक है। वैज्ञानिकों के अनुसार प्रत्येक दिशा से विशिष्ट ध्वनि तरंगे निसृत रहती हैं अतः यदि हमारी ध्वनि तरंगों के अनुरूप होती है तो सही सफलता देती है। यदि दिशा ध्वनि और शब्द ध्वनि में विरोध होता है तो प्रभाव में बाधा आती है। इसलिये साधक के लिये किस दिशा की ओर मुंह करके बैठे इसका ध्यान भी मन्त्र साधना में रखना आवश्यक है। यदि सही रूप से मन्त्र साधना की जाय तो निश्चय ही सफलता प्राप्त होती है। परन्तु ये सारे क्रम ‘प्रेक्टिकल’ है अतः योग्य गुरु के द्वारा ही सही ज्ञान और सही उच्चारण प्राप्त हो सकता है। इस प्रकार यदि साधक मन, वचन, कर्म से एकनिष्ठ होकर मन्त्र साधना करे तो उसे निश्चय ही पूर्ण सफलता प्राप्त होती है।


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