Bhastrika Pranayama भस्त्रिका प्राणायाम के फायदे और रहस्य ok

 

Bhastrika Pranayama भस्त्रिका प्राणायाम के फायदे और रहस्य

 

Bhastrika Pranayama भस्त्रिका प्राणायाम के फायदे और रहस्य
Bhastrika Pranayama भस्त्रिका प्राणायाम के फायदे और रहस्य

Bhastrika Pranayama भस्त्रिका प्राणायाम के फायदे और रहस्य भस्त्रिका प्राणायाम किसी में पिंगला के रेचक इत्यादि । परंतु मेरे अनुभव से निम्न प्राणायाम सबके हालांकि यह भी तीन-चार प्रकार का होता है। किसी में इड़ा के रेचक तो लिए सब जगह के लिए बहुत ही लाभप्रद है। स्त्री-पुरुष सबको समान रूप से लाभकारी है। सबसे पहले साधक उपयुक्त हवादार स्थान पर अपनी सुविधा के अनुसार बैठ जाएं। चाहे जिस आसन पर वह आराम से बैठ सकता है बैठ जाएं। गुरु का स्मरण कर लें। यदि मंत्र याद है तो मंत्र का जाप कर लें। आगे कोई मंत्र की खास आवश्यकता नहीं है। इस प्राणायाम के लिए 40 मिनट का समय | 50 / चाहिए। अतएव

प्रथम चरण

प्रथम चरण में गुरु का स्मरण कर आंख बंद कर लें। श्वास धीरे-धीरे अंदर लें एवं धीरे-धीरे छोड़ें, श्वास पर ध्यान रखें या मूलाधार चक्र पर । श्वास की रफ्तार शनैः शनैः तेज करते जाएं। श्वास की रफ्तार इतनी तेज कर दें कि श्वास के सिवाय कुछ रह ही नहीं जाए। पूरी शक्ति श्वास पर लगा देना है। साथ ही ध्यान रहे श्वास गहरी से गहरी हो । प्रत्येक श्वास का घात-प्रतिघात मूलाधार चक्र पर अवश्य घात करे । जितना गहरा श्वास लेंगे। उतनी ही ऊर्जा की संभावना शीघ्र जब आपको मालूम होने लगे कि आप श्वास के सिवाय कुछ है ही नहीं । आप श्वास के यंत्र हो गए हैं। आप साक्षी बनकर श्वास को अवश्य देखते रहें ।

 

जैसे हठयोग में कहा गया है- “यथा लगति हत्कंठे कपालावधि सस्वनय । वेगेन पूरमेच्चापिहत्यादूनावधि मारुतम्॥ पुनर्विरेचयेन्तदृच्यूरयेच्य पुनः पुनः । यथैव लोहकारेण भस्त्र वेगेन चाल्यते ॥” इस प्राण का इस प्रकार रेचक करें जैसे वह प्राण शब्द सहित हृदय और कंठ में कपालपर्यंत लगे फिर वेग से हृदय के कमलपर्यंत वायु को बारंबार पूर्ण करें। फिर उसी प्रकार पूर्ण कर और बारंबार इस प्रकार वेग से पूरक रेचक करें जैसे लोहार भस्त्र को चलाता है ।

इसीलिए इसे भस्त्रिका प्राणायाम कहते हैं । इस क्रिया में भस्त्र के सिवाय अब कुछ रह ही नहीं जाए। यह क्रिया 10 मिनट की है । सारा वातावरण विद्युत तरंगों से भर जाएगा। यदि कुछ आवाज निकल रही है, तो निकलने दें। आप मात्र सारे व्यक्तित्व को दांव पर लगा दें, पीछे के लिए कुछ भी न रखें। जितना गहरा आघात हो सके, पूरा रोआं- रोआं जाग्रत हो जा, शरीर की तरफ बिलकुल ध्यान नहीं देना है। पूरे शरीर को श्वास ही बना देना है।

यह क्रिया 10 मिनट की होगी तब साधक दूसरे चरण में प्रवेश करे ।

दूसरा चरण

– इस चरण में गहरा श्वास लेते रहें, साथ ही शरीर को ढीला छोड़ दें। शरीर पर ध्यान नहीं देना है। श्वास चालू रखना है। शरीर चाहे जो चाहे करे । रोना आएगा। हंसना आएगा, चिल्लाना भी चाहेगा । गाली भी 51 दे सकता है। हाथ-पैर नाचना भी चाहेगा, जो भी शारीरिक क्रिया हो, होने दें। अब द्रष्टा बनकर देखें। गहरा श्वास चालू रखें। शरीर सोना चाहे सोने दें। अंदर से शक्ति उठेगी तो शारीरिक क्रियाएं स्वाभाविक हैं। यह क्रिया 10 मिनट की होगी। अब पूरा शरीर विद्युत तरंगों से भर जाएगा। ऊर्जा भीतर से निकलना चाहेगी। अतएव शारीरिक क्रियाएं विभिन्न प्रकार से होंगी। इस 10 मिनट में पूरे ताकत से अपने को लगा देना है। प्रत्येक श्वास मूलाधार चक्र पर आघात लगा रही है। पेट धौंकनी (लुहार की भट्ठी) के समान चलने लगता है। अब साधक को

तीसरे चरण

में प्रवेश करना है। अतएव पूरे जोर से धक्का देना है। मुलाधार चक्र पर, पीछे के लिए कुछ भी नहीं बचाना है, न ही शरीर के संबंध में सोचना है। जो भी शरीर के स्तर पर हो रहा है होने देना है। श्वास गहराते जाना है। तीसरा चरण – आज तक साधक बाहर से मंत्र याद कर जाप कर रहा है। रट रहा है। अब तक बाहर से पूछता आ रहा है। मैं कौन हूं (कोऽहम्) ? अब समय आ गया अपने आप से पूछने का। बाहरी सारा ज्ञान बह जाने दें। अब साधक समझे कि ‘मैं श्वास के सिवाय कुछ नहीं हूं।’ श्वास गहरा जारी रहेगा। अब इन्ही श्वासों के माध्यम से पूछना है ‘कोऽहम्’ ‘कोऽहम्’ बार-बार । प्रत्येक श्वास-प्रश्वास के साथ साधक का प्रश्न भी गहराते जाएगा।

ऐसा महसूस हो कि साधक प्रत्येक रोएं-रोएं से पूछ रहा है, ‘कोऽहम्’ ‘कोऽहम्’ । यह प्रश्न 10 मिनट तक जारी रहेगा। श्वास मस्तिष्क की तरफ गहरा लेते रहना है । छोड़ते रहना है। प्रश्न पूछते रहना है इस क्रिया में साधक श्वास में प्रश्न ‘कोऽहम’ के सिवाय कुछ भी नहीं रह जाए। जब ऐसा मालूम होने लगे कि ‘कोऽहम्’ ही रह गया है तब उत्तर अपने आप अंदर से आएगा ही। कुछ इंतजार करें। जो उत्तर आएगा, वही ठीक होगा।

आज तक हम शास्त्रों से पूछते रहे हैं, गुरु लोग भी बता रहे हैं प्रवचन के माध्यम से, कथा के माध्यम से। हम भी पुण्यापुण्य के लिए सुनते रहे हैं। याद करते रहे हैं। सो ठीक नहीं है। अब आपका प्रश्न मेरा उत्तर नहीं, आपका ही उत्तर होगा। पूरा जीवन उत्तर से बदला होगा।

अब आपके सारे प्रश्न गिर जाएंगे। न आप प्रश्नों में फंसेंगे न ही उत्तर की प्रतीक्षा में, आप श्वास गहरा लेते रहें, प्रश्न पूछते रहें। इस क्रिया में शारीरिक क्रियाएं विभिन्न प्रकार की होंगी, होने दें। जरा भी शरीर की तरफ ध्यान न दें। जब साधक श्वासों एवं कोऽहम् के सिवाय कुछ भी न बचे, यह क्रिया अंतिम चरण पर पहुंच जाए तब आगे के चरण में प्रवेश करना चाहिए या आगे के चरण में प्रवेश करना है। 52 चौथा चरण – यह चरण भी 10 मिनट का पूर्ण विश्राम का होगा। अब आप पूर्ण विश्राम में हो जाएं, न ही प्रश्न पूछें न ही गहरा श्वास लें ।

मात्र साक्षी बनकर शरीर को देखें, श्वास को देखें। यह समय वास्तव में प्रतीक्षा का होगा । अंदर से पूछे गए प्रश्न के उत्तर की प्रतीक्षा कर पूर्णतया आराम से पड़े रहें, चाहे बैठें, चाहे लेट जाएं, शव की तरह पड़ जाएं। साक्षी की तरह अपने को देखते रहें । साधक जितना गहरे में विश्राम करना चाहे, करे।

अपने अंदर साक्षी भाव प्रवेश करता जाए, निरीक्षण करना है । जैसे दूसरे का शरीर पड़ा है। शांत निःशब्द हो निहारता रहे। स्वेच्छा से श्वास लेते रहें । इस तरह 10 मिनट पूर्ण विश्राम के पश्चात साधक यह कल्पना करे कि मैं ऊर्जा से पूर्ण हूं। आनंद से परिपूर्ण हूं। चारों तरफ आनंद ही आनंद है। आप कल्पना करें श्मशान पर आपका शरीर पड़ा है।

आप शरीर से बाहर हैं। साक्षी भाव से शरीर को देख रहे हैं। श्मशान पर बहुत-सी लाशें जल रही हैं। आप शरीर नहीं हैं। आप निर्गुण, निराकार हैं। अब आप करुणावश शरीर में प्रवेश करें। सहस्रार से प्रवेश करें। आपके प्रवेश करते ही शरीर ऊर्जा से भरने लगा है। तेज बढ़ रहा है।

धीरे-धीरे वह तेज पूर्ण मस्तक, कान, नाक तक फैल गया। शारीरिक विकार नीचे जा रहा है। वह तेज गरदन, हृदय, नाभि से होते हुए कमर पर फैल गया । अंदर कोमल काम नीचे उतर रहा है। प्रकाश कमर से नीचे जंघा पैर तक फैल गया। शरीर का सारा रोग, दुख, मल पैर की अंगुलियों से निकलकर वायुमंडल में विलीन हो गया।

आप पूर्ण स्वस्थ, प्रकाश पूर्ण, आनंद स्वरूप हो गए। नख से शिख तक आनंद से भर गए हैं। गुरु का ध्यान कर कुछ गहरा श्वास लेते हुए उठ जाएं। यदि आंख नहीं खुले तो हाथ से हल्का मल लें। यदि लेट गए तो, उठने में कठिनाई मालूम हो तो दो-चार मिनट लेटे रहें। यह सोचते रहें कि परमपिता परमात्मा हमारे ऊपर ऊर्जा, आनंद, आशीर्वाद स्वरूप उपहार दे रहे हैं।

गुरु कृपा हमारे साथ है। इस तरह धीरे-धीरे उठ जाएं, गुरु वंदना करें। नित्य क्रिया के अनुरूप कार्य करें। यदि साधक सुबह शाम भी कम से कम दोनों गोधूल के समय करे तो अत्यंत ही लाभ होगा। शरीर से रोग दूर हो जाएगा । जैसे यकृत संबंधी रोग दूर होकर साधक का चेहरा चमकता हुआ कांति युक्त हो जाएगा।

यह प्राणायाम औरत, पुरुष, लड़का, लड़की सबको स लाभप्रद है। इसमें किसी भी तरह की हानि की संभावना नहीं है 52/232 24 घंटा से मात्र 2 घंटा 40 मिनट निकालकर चार बार यह प्रा यम-नियम का पालन करे, गुरु कृपा साथ रखे तो साधक निश्चित – ही 30 दिन में कुण्डलिनी जाग्रत कर लेगा। यह अक्षरशः सत्य है।

इन 30 दिन में मौ 53 ज्यादा रहे। जितना कम बोलने से काम चल जाए। आप अपना नित्य का कार्य भी करें। उसमें कोई अवरोध नहीं। गरम पदार्थ का त्याग करना ही उचित होगा। बाद में तो आपके नहीं चाहने पर भी छूट जाएगा । वयुः कृशत्वदं वदने प्रसन्नता नाद स्फुटत्व न घने सुनिर्गल । अरोगता विदुजयोऽग्निदीपनं नाड़ी, विशुद्धिर्हठ योग लक्षणम्॥ इस प्राणायाम में चतुर्थ भी अपने आप हो जाएगा। इसमें श्वास-प्रश्वास को रोके बिना केवल रेचक पूरा किया जाता है। अतएव इसे अलग से करने एवं समझने की आवश्यकता नहीं है ।

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